Saturday, January 31, 2009

हम पागल ही अच्छे हैं...


निर्धन परिवारों के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाने का लक्ष्य लेकर चल रहे विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के संस्थापक श्यामसुंदर माहेश्वरी के पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित होने की खबर के बाद से ही उनके घर बधाई देने वालों का तांता लगा है। फोन की घंटी है कि बंद होने का नाम ही नहीं ले रही। बधाइयों और फोन की घंटियों के बीच रुक-रुक कर चले उनके इंटरव्यू में देखा कि उनके शुभचिंतक हर जाति, हर मजहब के हैं। उन्होंने हर गरीब बच्चे को अपना माना है। अब तक के उनके सफर पर एक नजर...
घर जाकर बहुत रोये मां-बाप अकेले में,
सस्ता नहीं था कोई खिलौना उस मेले में।

यह दो लाइनें दर्दभरी हैं, लेकिन ज्यादा दुख होता है यह सोचकर कि हम ऐसे देश में जी रहे हैं, जहां खिलौनों से महंगी शिक्षा हो गई है। पिता स्वर्गीय खयालीराम जी गरीब बच्चों के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे। 1971 में जब मैंने अध्यापन कार्य शुरू किया, तब पिताजी ने आशीर्वाद देकर निर्धन बच्चों की हरसंभव सहायता करने का वचन लिया। मैंने संकल्प लिया कि हर साल कुछ बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाऊंगा। साल-दर-साल इन बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। मैंने महसूस किया कि जहां हाथ रखो, वहीं दर्द है। हम ढोल पीटते हैं कि समाज में शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ रहा है, लेकिन सोचने की बात है कि जो लोग दो वक्त की रोटी का जुगाड़ बमुश्किल कर पाते हैं, वह शिक्षा का खर्च कैसे वहन कर पाएंगे।
लोग मिलते गए और...
आठ-दस बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाना शुरू किया था। मेरे पास आने वाले बच्चे गरीब घरों से थे। धीरे-धीरे जब इन बच्चों की भीड़ बढ़ती गई तो कुछ लोगों ने मुझे `पागल´ और `सनकी´ तक कहना शुरू कर दिया। मेरे बच्चे तक मुझे कहने लगे थे कि पापा आप हमें छोड़कर इनके पास चले जाओगे। मेरे बेटों ने धीरे-धीरे मेरी भावना को समझा, लेकिन लोगों के ताने नहीं बदले। पिताजी को वादा कर चुका था, इसलिए हार नहीं मानी। बहुत मुश्किलें आई, लेकिन मेरे पढ़ाए बच्चों में से जब आईएएस, आईपीएस, बैंक मैनेजर और इंजीनियर जैसे पदों पर आसीन हुए तो लगा जैसे सारे जहां की खुशियां मिल गई हैं। धीरे-धीरे लोग साथ आते गए और कारवां बन गया। जो लोग मुझे पागल कहते थे, वे भी बधाई देने लगे। इनसान जब कुछ अलग करता है तो थोड़ा विद्रोह तो झेलना ही पड़ता है, इसलिए थोड़ा-बहुत मुझे भी झेलना पड़ा। भगतसिंह की दो लाइनें याद थीं...
इन दीवाने दिमागों में ख्वाबों के कुछ लच्छे हैं,
हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे हैं।

मेरा पद्मश्री पत्नी के नाम...
मेरा मानना है कि आप किसी काम में तब तक सफल नहीं हो सकते, जब तक गृहलक्ष्मी उसमें सहयोग ना करे। मेरा यह पुरस्कार पूरी तरह मेरी पत्नी के नाम है। स्त्री को दुर्गा यूं ही नहीं कहा गया। वह अपने दो हाथों से दस हाथों जितने काम एकसाथ करने का सामर्थ्य रखती है। भूला नहीं हूं वो दिन। मेरी पत्नी पुष्पा कपड़े धो रही होती थी कि तभी किसी बच्चे की सहायता के लिए फोन बज उठता था। पत्नी फोन सुने, इससे पहले डोर बैल बज जाती थी। ऊपर से गैस पर चढ़ाए दूध का ध्यान भी रखना था। इन सभी चीजों को एकसाथ कैसे मैनेज करना है, यह स्त्री ही समझती है। पुष्पा ने यह सब किया। घर का राशन लाना हो या मेरी अनुपस्थिति में किसी जरूरतमंद बच्चे की मदद करनी हो...सभी काम पुष्पा ने किए। मुझे संगीत बहुत पसंद है। बहुत थका-हारा होने के बावजूद कभी रात को हारमोनियम बजाने का मन करता था। आवाज से कभी-कभी पड़ोसी जाग जाते थे पर दिनभर की थकी पत्नी ने उफ तक नहीं की।
वो बचपन का जमाना था...
मेरे पिता आढ़ती थे। बचपन संपन्नता में गुजरा। कभी किसी चीज की कमी नहीं रही। बचपन के दिनों को याद करता हूं तो लगता है कि आज के बच्चे अपना बचपन जी ही नहीं रहे। हम बड़ों का आदर करते थे, लेकिन आज बड़ों को बच्चों से डरकर रहना पड़ रहा है। खुद की मर्जी चलाकर तो उम्रभर जीना है। बड़ों की डांट और उनके डर के साथ बिताए बचपन का मजा ही अलग था। उस जमाने में अनुशासनहीन कोई-कोई होता था और आज अनुशासित कोई-कोई है। बस इसी अंतर के कारण ही युवा अपने लक्ष्य से भटक रहे हैं।
मोबाइल है या मुसीबत...
मैं मोबाइल नहीं रखता। कुछ लोग इस बात को झूठ समझते हैं, लेकिन मुझे बहुत-सी परेशानियों की जड़ तो मोबाइल लगता है। मैं खुद मोबाइल नहीं रखता, इसलिए कम-से-कम अपनी क्लास में तो स्टूडेंट्स को मोबाइल ऑफ रखने को कह सकता हूं। मेरा बड़ा बेटा मुम्बई में सीए है और छोटा यहीं लेक्चरर है। पद्मश्री की सूचना मिलने पर कुछ शुभचिंतकों ने बेटों से कहना शुरू कर दिया कि पापा को मोबाइल ले दो। मुझे मोबाइल नहीं रखना है, लेकिन बेटे की खुशी के लिए एक दिन के लिए उसका मोबाइल जेब में रख लिया है।
पुरस्कार के लिए काम नहीं...
मैंने कभी किसी पुरस्कार की उम्मीद के साथ काम नहीं किया। हमारी समिति द्वारा शिक्षित बच्चे कुछ बनकर नाम कमा रहे हैं, वही हमारे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है। दरअसल, पुरस्कार काम करने के लिए प्रेरणा तो प्रदान करते हैं, लेकिन किसी काम की सफलता को पुरस्कार के आधार पर आंकना सही नहीं है। हमारे देश में बुनियादी समस्या शिक्षा की है। अगर शिक्षा की समस्या खत्म हो जाए तो बहुत-सी समस्याएं स्वत: ही खत्म हो जाएंगी।

(श्रीगंगानगर निवासी श्यामसुन्दर माहेश्वरी का जन्म 1 अगस्त, 1952 को श्रीकरणपुर में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा श्रीगंगानगर के श्री सनातन धर्म बड़ा मंदिर से हुई। इसके बाद एसडी बिहाणी स्कूल व कॉलेज से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की। एसजीएन खालसा कॉलेज (श्रीगंगानगर) में कॉमर्स डिपार्टमेंट के एचओडी श्री माहेश्वरी डबल एमकॉम हैं। श्री माहेश्वरी ने 25 अक्तूबर, 1988 को विद्याथीü शिक्षा सहयोग समिति की स्थापना की। श्री माहेश्वरी के नेतृत्व में जनसहयोग से आज लगभग 4500 स्टूडेंट शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। श्री माहेश्वरी से पहले श्रीगंगानगर के कर्नल एएस चीमा (एवरेस्ट विजेता) को 1969 में पद्मश्री से नवाजा जा चुका है।)

9 comments:

संगीता पुरी said...

श्री माहेश्‍वरी जी के व्‍यक्तित्‍व और विचारों को जानकर बहुत अच्‍छा लगा.....उन्‍हें मेरी ओर से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।

हरकीरत ' हीर' said...

श्यामसुंदर माहेश्वरी ji ko पद्मश्री पुरस्कार के लिएchyenit kiye jane pr bhot bhot bdhai...! Aur aapko bhi...jo aapne hame itane acche insan se milvaya...unhen naman hai mera...!

Publisher said...

bahut bahut badhai maheshwari ji ko. vichar or sanskar hi bhavishya ki tasvir hote hain. maheshwari ji perfact example hain.

fir se badhai.

Akanksha Yadav said...

श्री माहेश्‍वरी जी पर बहुत सुन्दर लिखा आपने, बधाई.
कभी मेरे ब्लॉग शब्द-शिखर पर भी आयें !!

सुशील छौक्कर said...

श्री माहेश्‍वरी जी के व्‍यक्तित्‍व और विचारों को जानकर दिल को सुकून मिला और अपने सर की भी याद आ गई। उनको हमारी तरफ से बधाई और ढेरों शुभकामनाएं। और आपका और नीलिमा जी का भी शुक्रिया जिनकी वजह से हम इनके बारें में जान सके। और हाँ मेरी बेटी नैना आपकी बेटी की तस्वीर देख कहनी लगी पापा देखा दूसरी नैना। बहुत सुन्दर फोटो। हमारी तरफ से ढेर सारा प्यार और आर्शीवाद।

bijnior district said...

माहेश्‍वरी जी के बारे में जानकर बहुत अच्‍छा लगा।उनका परिचय कराने के लिए बधाई।

Ashish Maharishi said...

आप दोनों लोगों को बधाई हो..साथ में नीलिमा जी को शुक्रिया जिन्होंने आपके ब्लॉग का लिंक मुहैया कराए

विजय तिवारी " किसलय " said...

इस आदर्श और भाव पूर्ण आलेख के लिए बधाई .-विजय

Bala said...

hume garv hai ki hamare desh main aise bhi log hai jo bina swarth ke kaam kar rahe hai......jiska udaharan maheshwari ji hai.... maheshwari ji garib baccho ki seva nahi..... balki desh ki sewa kar rahe hai .........


Praveen Deshmukh