Saturday, February 7, 2009

...वो तो काली है!


भले ही ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बन गए हैं, लेकिन अपने इंडिया की हालत न जाने कब सुधरेगी। यहां काले-गोरे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तो बनते रहते हैं, लेकिन बात लड़कियों की हो तो न जाने क्यूं उनका काला होना अपराध माना जाता है। अपने बेटे के लिए बहू चुनते वक्त तो `काली´ को नापसंद करने की बात बहुत बार सुनी होगी। अब तो हद हो गई। काम वाली बाई की डिमांड भी `गोरी´ ही है। दो दिन पहले की बात है। अपनी बर्तन वाली ने रिजाइन देने की घोषणा कुछ इस तरह की-`भाई जी, दस तारीख से मैं नहीं आऊंगी। गांव जा रही हूं हमेशा के लिए। अपना इंतजाम और मेरा हिसाब कर देना।´
कोई लंबा-चौड़ा हिसाब था नहीं, फिर ताजी-ताजी तनख्वाह भी मिली थी, इसलिए उसके हाथ में रुपए थमाते हुए मदद की भीख भी मैंने मांग ली-`हिसाब तो हो गया, अब नई काम वाली का इंतजाम भी करती जाओ।´
जवाब मिला-`काली चलेगी?´
मैं थोड़ा घबराते हुए बोला-`मुझे शादी थोड़े ही करनी है। काली-गोरी जैसी भी हो दौड़ेगी।´
वो बोली-`पहले पूछना सही है भाई जी। डेयरी के साथ वाली पंडिताइन भी इंतजाम के लिए बोली थी। मैंने इंतजाम किया तो मुंह बनाते हुए बोली-`...ये तो काली है। कोई ढंग की ढूंढ कर दे।´
बात सुनकर बड़ी हैरानी हुई कि कमबख्त बड़े शहर के रईसों को बर्तन धोने में भी ग्लैमर चाहिए। खैर, गुनगुनाते चलें-गोरे-गोरे मुखड़े दिल काले-काले...

5 comments:

Anonymous said...

श्याम वर्ण की लड़कियों के दर्द को तो हर वो विज्ञापन हरा कर देता है जो सफलता को गोरेपन या 'उजलेपन' से जोड़ देता है, फेयर & लवली, fairever आदि। एयर होस्टेस बनना हो, मिस इंडिया बनना हो, काले यहाँ नही चलते। बड़ी शर्म की बात है।

राजीव जैन said...

bahut badiya

प्रदीप मानोरिया said...

यथार्थ पर चोट

महेंद्र मिश्र.... said...

वाह हो तो काली मगर दिलवाली हो .
प्रहार: अपने गमो की दास्ताँ हम किसको सुनाये दिल ए जाना.

Hari Joshi said...

बहुत खूब। हमारे पंडित महेन्‍्द्र जी की टीप पर भी गौर फरमाएं- काली तो चलेगी लेकिन शर्त है कि दिलवाली हो..........क्षमा कीजिएगा पंडित जी बगैर दिल के हमने तो कोई इंसान देखा नहीं।