Friday, February 13, 2009
गुलाब ज़्यादा बिके या कंडोम?
वेलेंटाइन्स-डे है तो विरोध के स्वर भी गूंजने लगे हैं। वेलेंटाइन्स समर्थक प्यार के विरोधियों का विरोध कर रहे हैं तो विरोधी यह कहकर विरोध जारी रखे हैं कि इससे भारतीय संस्कृति को नुकसान पहुंच रहा है। दोनों में कौन सही और कौन गलत...ये तो थोड़ी दूर की बात है। अभी कुछ दिन पहले एक अखबार में पढ़ा था कि वेलेंटाइन्स-डे पर सिर्फ जयपुर में करोड़ों रुपए के गुलाब बिकेंगे। इसी बीच किसी ब्लॉग पर लेखक की चिंता भी पढ़ी कि ज़्यादातर लड़के-लड़कियांे के लिए यह दिन फिजिकल रिलेशन बनाने का बहानाभर है। शुक्रवार को डिनर के बाद टहलने निकले। एक साथी के सिर में दर्द था। मेडिकल स्टोर पर डिसप्रिन लेने पहुंचे, तभी दो लड़के जल्दबाजी में वहीं आए- दो पैकेट `कोहिनूर´ देना। दुकानदार ने कंडोम के पैकेट दिए तो दोनों इस जुमले के साथ निकल लिए-`हो गई वेलेंटाइन की तैयारी।´ उम्र में बहुत छोटे दिख रहे इन प्रेमियों के जाने के बाद अपन ने दुकानदार की चुटकी ली-`अंकल, बच्चों को भी कंडोम बेच रहे हैं?´ जवाब मिला-`इन दो दिनों में सब बिक गए। कल वेलेंटाइन्स-डे है। कंडोम का सीजन।´ ...खैर क्या करें? कुछ नहीं तो सिर्फ इतना जरूर करें कि ऐसों को `प्रेमी´ तो ना कहें, क्योंकि इश्क, मोहब्बत, प्यार, चाहत इसे समझने में उम्र बीत जाएगी।
सबमें रब दिखता है...
प्यार के मौसम में एक गाना खूब बज रहा है-`तुझमें रब दिखता है यारा मैं क्या करूं...।´ बात वेलेंटाइन्स-डे की चली है तो लगभग हफ्तेभर पुराना एक वाकया भी बता दूं। किसी काम से यूनिवçर्सटी जाना हुआ। वहां एफएम पर यही गाना बज रहा था। एक सहेली ने दूसरी से पूछा-`तुझे किसमें रब दिखता है?´ जवाब आया-`मुझे तो सबमें रब दिखता है। कोई स्मार्ट लड़का श्रीकृष्ण तो कोई गुरुनानक, कोई रामजी तो कोई भोले बाबा... लिस्ट बहुत लंबी है।´
...खैर यहां भी क्या कर सकते हैं। चमक-धमक टाइप लड़कियों के मुंह से और कुछ सुनें, इससे पहले अपुन ने मदर टेरेसा की लाइन पढ़ डाली-`हर इंसान में ईश्वर (रब) देखो, हर इनसान से प्यार करो।´ बशर्ते वो प्यार ही हो जनाब और कुछ नहीं। चलते-चलते इतना ही कि एक सर्वे भी करवा लिया जाए कि प्यार के महीने में गुलाब ज़्यादा बिके या फिर...।
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12 comments:
heading dalate samay nahi lajaye aakhir mein kyon laja gaye, yahi baat main duniya ko samajha ke thak gaya pyaar galat nahi niyat galat hoti... par sabke apne jhande hai...
विनय सही कह रहे हैं या तो हैडिंग में भी .. लगा देते. :)
-`हर इंसान में ईश्वर (रब) देखो, हर इंसान से प्यार करो।´ -जय हो!!
ginti koun karega, gulab to dikh jayega. kandom nahi. narayan narayan
वाह... सचमुच प्यार का इससे बदतर तरीके से मजाक नहीं उड़ाया जा सकता
देखिए इन दोनों चीज़ों के बीच अन्योन्याश्रय टाइप का सम्बन्ध है. एक बिकेगा तो दूसरे को बिकने से कोई रोक नहीं सकता और अगर नहीं बिके तो दोनों ही नहीं बिकेंगे.
Bhot accha likha Nagpal ji ...kya karen aajkal pyar ki paribhasa hi badalti ja rahi hai...kai bar apne aas pas dekhti hun to vitrisna si hone lagti hai aajkal k yuvaon ko dekh kr....!!
नागपाल जी, शुक्रिया बताने के लिए...कौन हैं इसके संपादक और कौन सी कविता थी ? मैंने तो
नहीं भेजी शायद ब्लाग से ली हो...!
... बहुत खूब।
...... बहुत खूब।
बहुत रंगीन और विविधता से भरा है आपका ब्लॉग , पसंद आया
मस्त...मज़ेदार...थोड़ा स्तब्ध करने वाला भी. वैसे, देह इतनी डरावनी नहीं कि उससे भागा जाए और नैतिकता इतनी बोझिल भी नहीं कि प्रेम को थाम सके. हां, प्रेम के नाम पर देह की तलाश ज़रूर गलत है। जो करें, डंके की चोट पर करें. उसके लिए प्रेम का नाम बरबाद न हो...इसका खयाल रखना चाहिए।
इसे सेक्स एजुकेशन की जीत समझो या हार . फैसला आपके हाथ
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