Monday, March 30, 2009
लेडिज टेलर के सपने
काफी वक्त पहले का एक धारावाहिक तो याद ही होगा। नाम था-`मुंगेरीलाल के हसीन सपनें। इन दिनों मैं बना हूं मुंगेरीलाल। सपनों में हसीनाएं आती हैं पर सपने जरा भी हसीन नहीं हैं। सुना था कि दिन के सपने सच होते हैं। अगर सच में ऐसा है तो फिर मुझ जैसे नाइट ड्यूटी करने वालों के तो सभी सपने सच होने चाहिए! वैसे नाइट ड्यूटी वालों की हालत बड़ी खस्ता होती है। कुछ दिन पहले एक सहकर्मी अपना रोना रो रहे थे। ड्यूटी से फ्री होकर घर जाते हैं। सोते-सोते घड़ी की सुइयां चार बजे को पार कर जाती हैं। पत्नी से प्यारभरी बात शुरू करें, इससे पहले घर के सामने वाले मंदिर की घंटियां माहौल भक्तिमय कर देती हैं। उन जनाब की बात सुनकर सभी के चेहरे पर उन्हें सांत्वना देने के भाव उमड़ रहे थे पर किसी को हम कुंवारों का दर्द नहीं दिखा। भई बीवी-बच्चे न सही, लेकिन हमारे सिरदर्द के कारण और हैं। दूसरों की छोड़ूं और अपना दुखड़ा बयान करूं। बात हंसने की नहीं, रोने की है पर समझे कौन!
छोटे शहरों से आए मुझ जैसे लोगों को बड़े शहरों के घरों में तंग जगह बड़ी अखरती है। मेरे कमरे के पीछे वाले कमरे में एक लेडिज टेलर साहब रहते हैं। वैसे बहुत-से पुरुष लेडिज टेलर को देख आहें भरते हैं। बहुत-से पुरुषों का ड्रीम जॉब है लेडिज टेलर। बस किन्हीं कारणों से लेडिज टेलर नहीं बन पाए, लेकिन ख्वाहिशे पीछा छोड़ती हैं क्या! ऐसी ख्वाहिशे रखने वाले ये देख लें कि दूर के ढोल सुहावने ही होते हैं। बात लेडिज टेलर और सपनों से शुरू हुई थी। ड्यूटी से फ्री होकर घर जाता हूं। एफएम पर सुबह पांच बजे भजन आते हैं। उन्हें सुनते हुए ही अक्सर आंख लगती है। भक्ति में लीन हुई मेरी आंखें खुलती हैं सूट और ब्लाउज के झगड़ों से। दो-तीन घंटे की नींद के बाद कुछ हलचल-सी होती हैं। पीछे वाले लेडिज टेलर से कोई महिला लड़ने पहुंच जाती है। डायलॉग कुछ ऐसे होते हैं-
`बीस दिन हो गए, मेरा सूट नहीं सिला...परेशान हो गई चक्कर काटते-काटतें
`एडवांस पैसा लिया और ये क्या किया। ब्लाउज इतना टाइट...सत्यानाश हो गया मेरी नई साड़ी कां
और भी ऐसे बहुत-से डायलॉग, जिन्हें सुनकर आंखों के साथ-साथ कानों से आंसू आने लगें। रोज सुबह सूट-ब्लाउज के इस वाकयुद्ध से परेशान मैं बेचारा कभी कानों पर तकिया रखता हूं तो कभी बिना नींद पूरी किए ही उठ जाता हूं। अब कुछ दिन से एक नई मुसीबत शुरू हो गई है। मुझे सपने भी लेडिज टेलर और सूट-ब्लाउज के आने लगे हैं। सपनों में कभी लेडिज टेलर ही मैं होता हूं तो सूट लेने आई महिला के साथ आया उसका पति भी मैं। अब सपने हैं तो इन पर किसी का जोर थोड़े है। पति और टेलर दोनों की हालत बहुत खराब होती है। चिल्लाना महिला का काम होता है। चुपचाप खड़े रहना टेलर और पति का काम। वैसे अब यकीन होने लगा है कि सुबह के सपने सच होते हैं। क्या कहते हैं आप!
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8 comments:
बाप रे! इतने विस्तार से कभी नहीं सोचा था लेडीज टेलर के बारे में!
अरे...मज़ेदार है भाई...पिंक सिटी में रहते-रहते खूब गुलाबी हो रहे हैं आप...पर करें भी क्या...कुंवारे हैं ना...
wah !
kaya baat hai
सच कहा इस दिल का दर्द न जाने कोई हा हा हा ......slide show बहुत अच्छा लगा...
Regards
aap ki kahi aur sochi hui baatein bilkul sahi hai, kintu aisa lagta hai ki inke andar koi arth chupa hua hai
जबरदस्त व्यंग है आपका ?मैं आपमें सर्व्स्रेस्था व्यंगकार की पूरी संभावनाएं देख रहा हूँ ,अपनी दृष्टी को व्यापकता दें
आपके साथ सहानुभूति है। अब यह मत सोचना सहानुभूति कोई लड़की है। वैसे यह सच है कि लोग रात की पारी में काम करने वालों का कष्ट जरा भी नहीं समझते। कान में रूई डालिए या फिर मकान बदल डालिए।
घुघूती बासूती
सामने वारी भोजाई के सपने तो नहिन आ रहे हैं...
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