Wednesday, May 13, 2009
प्यार से प्यारी बात
पिछले साल आज ही के दिन यहां (जयपुर) बम धमाके हुए थे। आज के अखबार और न्यूज चैनल्स देख पुरानी यादों के जख्म ताजा हो उठे, लेकिन वो धमाके मुझे एक ऐसी सीख दे गए, जिसे समझ लिया जाए तो दोस्ती, प्यार और हर रिश्ता कभी दरकेगा नहीं।
करीब दो साल होने को हैं। हर मंगलवार मैं और मेरा दोस्त हिमांशु हनुमानजी के मंदिर जाते हैं। मंगलवार को मेरा ऑफिस से ऑफ होता है पर पिछले साल 13 मई (मंगलवार) को मुझे ऑफिस आना पड़ा। हम साथ मंदिर नहीं जा सके। देर शाम काम खत्म करने के बाद मैं अपने एक कलीग के साथ पास ऑफिस के पास स्थित माँ दुर्गा के मंदिर गया। मंदिर से बाहर निकले ही थे कि मेरे कलीग के मोबाइल पर मैसेज मिला कि यहां बम ब्लास्ट हुआ है। ऑफिस पहुंचने तक ये धमाके एक से ज्यादा हो चुके थे। टीवी पर धमाकों वाली जगह का लाइव टेलीकास्ट देख रहा था कि ध्यान आया यह रास्ते कुछ वैसे ही हैं, जहां से मैं और हिमांशु मंदिर आते-जाते वक्त गुजरा करते थे। मन ने एक अजीब-सा डर महसूस किया। हिमांशु को फोन लगाया पर नेटवर्क व्यस्त होने से मोबाइल काम नहीं कर रहे थे। कुछ देर बाद उसके पापा से बात हुई तो उन्होंने बताया कि वो ठीक है और घर आने वाला है। मेरा मोबाइल भी थोड़ी-थोड़ी देर बाद बज रहा था। कुशलक्षेम पूछने के लिए कुछ ऐसे परिचितों के फोन भी आए, जिन्होंने इससे पहले कभी फोन नहीं किया। हाल-चाल पूछने के लिए आने वाली कॉल्स का दौर अगले कुछ देर तक चला।
सभी भगवान का शुक्रिया अदा कर एक ही बात कह रहे थे कि हमें कुछ नहीं हुआ, लेकिन बावजूद इसके मेरा मन उदास था। कारण कुछ खास ना होकर भी दिल को परेशान करने वाला था। कुछ तीन-चार ऐसे अपने लोग थे, जिनका फोन नहीं आया था। मन में एक ही बात आ रही थी कि उनमें से किसी को भी मेरी परवाह नहीं है। जब दिल का उबाल बाहर आने लगा तो मैंने उन सभी को फोन कर एक ही राग अलापा-क्वमेरे मरने या जीने से शायद किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। इतने दिनों बाद ये पूछना भी मुनासिब नहीं समझा कि जिंदा हूं भी या नहीं...। गुस्से में काफी कुछ ऐसा भी कह गया, जो लिख नहीं सकता। इन्हीं अपनों में से एक का जवाब जैसे मेरे सारे सवालों पर भारी पड़ गया। उन्होंने कहा-तुम्हे कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि हमारी दुआएं हर पल तुम्हारे साथ हैं। इस विश्वास को हमेशा दिल में रखा है। भगवान पर भरोसा है, इसीलिए फोन कर कुछ नहीं पूछा।सुख-दुख आते हैं पर बहुत बार रिश्तों में आई गलतफहमियां उनके दरकने का कारण बन जाती हैं। ...खैर यह छोटा-सा, प्यारा-सा जवाब जब भी मुझे याद आता है, मैं एक ही बात दोहराता हूं-मैंने सभी को माफ किया। मुनव्वर राणा ने भी क्या खूब कहा है...
अभी जिंदा है मां मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा...
घर से निकलता हूं तो दुआ भी साथ चलती है...
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7 comments:
कितनी सुन्दर बात , आप ने याद दिलाई , शुक्रिया ...
बहुत से लोग ऐसे भी थे जो फोन करने के बाद भी सही वापिस न लोट सके...उन्हें मेरी और से श्रधान्जली..
आपके ब्लॉग पर आकर कभी कुछ ऐसा पाया जिसे कभी देखा ही नहीं था..आपकी लेखन शैली बहुत ही अच्छी है आप इसी तरह लिखते रहें !
आपके ब्लॉग पर आकर कभी कुछ ऐसा पाया जिसे कभी देखा ही नहीं था..आपकी लेखन शैली बहुत ही अच्छी है आप इसी तरह लिखते रहें !
achha likha bhai. aisa hota hai maan kuchh kehta hai dimag kuchh. par ek baat sahi hai apne to apne hote hain..., or fil koi apno ki dua hi to humara har bure waqt main khyal rakhti hai.
good day
aapke blog ki prastuti ka andaj bilkul NIRALA hai. Hume ye GANDA BACHHA achha laha. badhai
चिट्ठा चर्चा से आप के ब्लॉग का परिचय मिला-बहुत अच्छा लिखते हैं आप.बधाई.
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