
जब भी कोई किस्सा-कहानी किसी को सुनाता हूं तो अक्सर सामने से आवाज आती है कि ऐसा तुम्हारे साथ ही क्यों होता है...सभी लोग तुम्हे ही क्यों मिलते हैं? हर बार की तरह मेरा एक ही जवाब कि छोटी-छोटी बातों में कुछ बड़ा छिपा होता है। जरा-सा कुरेदकर देखो तो सब ओर कुछ किस्सा-कहानी है। इस कहानी का पात्र श्यामलाल है। श्यामलाल एक पेइंग गेस्ट हाउस में काम करता है। सभी को खाना सर्व करता है। हंसी-मजाक के साथ डांट भी सहन करता है। सब्जी में नमक कम-ज्यादा हो तो गलती कुक की, बर्तन पर परत जमी हो तो गलती बाई की, लेकिन सभी के हिस्से की डांट श्यामलाल के हिस्से में आती है। बावजूद इसके कभी चेहरे पर शिकन नहीं। वही फुर्ती और मुस्कुराहट बरकरार। अब मैं वह पेइंग गेस्ट हाउस छोड़ चुका हूं, लेकिन सुबह उठते ही श्यामलाल की आवाज 'भैया, नाश्ता कर लीजिए...' बहुत मिस करता हूं।
कुछ ही दिन पहले की बात है। एक साथी रिपोर्टर को कुछ लड़कियों के इंटरव्यू करने थे। अपने साथ पेइंग गेस्ट हाउस में ले गया। श्यामलाल को बुलाया गया। वह रिपोर्टर को लड़कियों के पास ले गया। रिपोर्टर को छोड़कर श्यामलाल मेरे पास आया और बोला-भैया, एक फोटो मेरा भी खींच दो।
मेरा जवाब-अभी सिर्फ लड़कियों के फोटो चाहिए। बाद में कभी देखेंगे।
श्यामलाल-नहीं, अखबार में फोटो नहीं छपवाना। घर भिजवाना है। सालों हो गए, घर गए। फोन आता है तो कहते हैं एक फोटो भेज दे।
मेरा जवाब-तो घर क्यों नहीं जा आते।
श्यामलाल-जाना है पर अभी कुछ पैसा और कमा लूं, फिर एक ही बार जाऊंगा।
श्यामलाल की ख्वाहिश पूरी हो, इससे पहले रिपोर्टर आती हैं। उन्हें जल्दी है और शायद कैमरे की बैटरी भी खत्म हो गई है। बाहर निकलते हुए दुखी महसूस करता हूं कि श्यामलाल की फोटो नहीं हो पाई। उसे आश्वासन देता हूं कि अगली बार जल्दी तुम्हारी फोटो करेंगे।
बड़ी-सी मुस्कुराहट के साथ श्यामलाल का जवाब-कोई बात नहीं भैया, जब कैमरा लाओ, तब फोटो कर देना...
(श्यामलाल हमेशा मुस्कुराता रहता है। फोटो का यह चेहरा श्यामलाल का नहीं, लेकिन शायद इसे भी घर जाना है...)
11 comments:
भावनात्मक अभिव्यक्ति है बेचारा शामलाल शुभकामनायें
:(
गौतम और श्यामलाल में बहुत कुछ मिलता-जुलता है...
वैसे दीपू, मुझे भी घर जाना है... कैमरा अभी यहीं है क्या ?
ye jeevan hai is jeevan ka khel nirala hai bahut accha likha apne
पढ़ते हुए अच्छा लगा.
badhiya!
सच कहा ..इन छोटी,छोटी बातों से ही जीवन अर्थ पूर्ण बनता है...नाम कुछ भी हो, जज़्बात वही हैं...बेहद अच्छे-से, एक मामूली -सी लगने वाली किस्सा बयानी की है आपने....!
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CHANDER KUMAR SONI,
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thanks.
BAHOOT HI BHAVOOK ABHIVYAKTI HAI ..... AISE KITNE HI SHYAAMLAAL HAMAARE SAMAAJ MEIN BIKRE HUVE HAIN .... APNI CHOTI CHOTI ICHAAON KO POORA KARNE KI KWAAISH MEIN ..........
bahut dino baad aapka blog pada. vakai bahut hi achchhi rachana hai.
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