Sunday, October 25, 2009

मदद करें...


कुछ सवाल परेशान करते हैं। उन्हीं में से एक है कि भगवान हैं या नहीं? कोई कहेगा कि हां हैं तो कोई कहेगा नहीं हैं। इसी आधार पर इनसानों के दो हिस्से हो जाएंगे-आस्तिक और नास्तिक। काफी लोगों से यह सवाल पूछा। हां बोलने वाले ज्यादातर लोगों से मेरा अगला सवाल था कि भगवान कहां हैं? सभी से एक ही जवाब मिला-'हमारे मन में।' मेरा अगला सवाल कि भगवान हमारे मन में हैं तो फिर मन दुखी क्यों होता है? जहां भगवान हैं, वहां दुख तो होना ही नहीं चाहिए। जितने जवाब मिले, उनमें से एक जवाब था-'भगवान हमारे मन में हैं। जब हम भगवान से ज्यादा किसी को मानने लगते हैं तो भगवान को दुख होता है। भगवान को दुख होता है तो हमारा मन भी दुख पाता है, क्योंकि मन में भगवान हैं।'
इस जवाब ने चेहरे पर हल्की मुस्कान तो ला दी, लेकिन संतुष्ट करने वाला जवाब अभी नहीं मिला। कुछ दिन भगवान के साथ बिताने की तमन्ना है। ऐसा हो सका तो कुछ दिन बाद शायद मैं इस सवाल का बेहतर जवाब दे सकूंगा। आपके पास इस सवाल का कारण सहित जवाब हो तो मदद करें...

7 comments:

राजीव तनेजा said...

मेरा मानना है कि भगवान हमारे...आपके...सबके अन्दर विद्यमान है।
भगवान के अपने अन्दर होने के बावजूद भी हम दुखी होते हैँ क्योंकि उसके(भगवान) द्वारा हमारा भाग्य निर्धारित किए जाने के बावजूद भी हम उस से ज़्यादा की इच्छा करते हैँ(क्योंकि इच्छाएँ अनंत हैँ)...जो हमें नहीं मिल पाता... इसलिए हमें दुखी होना पड़ता हैँ

परमजीत सिहँ बाली said...

किसी से जान कर आप नही जान पाएगें...क्योकि कोई किसी को समझा नही सकता....यह अनुभव की बात है...इस लिए सिर्फ अपनी मानें जो आप को महसूस होता है वही आपके लिए अभी सत्य है।

Udan Tashtari said...

आत्मदर्शन करिये. मेडीटेशन की राह पकड़े..ध्यान का प्रयोग करें..मुलाकात संभव है खुद से याने भगवान से.

varsha said...

jab ham bhagwan yani nirlipt bhav se zyada kisi ko chahne lagte hain to dukh hota hai...har halat mein ek se bane rahiye kuch nahin hoga lekin yahi to insaan ke bas mein nahin....

महावीर said...

दिलीपराज जी
जो लोग कहते हैं कि भगवान हमारे मन में है, बात तो ठीक है लेकिन एक बात भूल जाते हैं. किसी घर में कोई विकारों सहित किरायेदार हो तो उसके साथ रहने के लिए एक भद्र पुरुष कैसे रह सकता है. यही बात भगवान के लिए लागू होती है. हमारा मन तो विकारों से भरा हुआ है, वहां ईश्वर के लिए जगह ही नहीं है, कहाँ रहे वो? तो सब से पहले मन को शुद्ध करके भगवान के लिए खाली किया जाये तो हो सकता है वह वहां वास करने लगे.
रही बात कि वह है या नहीं, उसकी तो अनुभूति ही हो सकती है. जैसे प्रेम शब्द दिखाई नहीं देता केवल महसूस किया जाता है.

महावीर शर्मा
http://mahavirsharma.blogspot.com
मंथन
http://mahavir.wordpress.com

Manoj Kalra said...

यह हमारी सोच पर निर्भर है कि हम उसे मानते हैँ या नहीँ।
दुख मेँ हम उसे मानने लगते हैँ,लेकिन सुख मेँ उसी भगवान को संशय के दायरे मेँ ला खड़ा कर देते हैँ।
और बाकी मैँ परमजीत जी की बात से भी सहमत हूँ। ॐ

Unknown said...

WHAT IS A BUDDHA?

"A Buddha is a person who has developed all positive qualities and has eliminated all negative qualities. A Buddha has been an "ordinary" living being, like you and me before he became enlightened or awakened. Enlightenment is compared to waking up, as a person makes a complete transformation in body and especially mind. A Buddha is said to be all-knowing. One could say that a Buddha represents the very peak of evolution. A Buddha is not omnipotent or all-powerful; otherwise the Buddha would have ended all suffering in the universe...."

when kundalni energy rises from nabhi to head , a person becomes enlightened , he is termed as god , this person is free from all suffering. As the energy makes the mind 0. without thought , so no thought , no tension, he is the owner of his mind , he can think when he wants and can bee silent lika a pond when needed. To get enlightened its a tough job , but buddha got it , and so called all yogis in ancient indian history. thay r called god , whether its jesus,mohmmad, ram, krishna or mira.

Manoj Budhia
budhiamanoj@yahoo.co.in