Sunday, October 26, 2008
धर्मेन्द्र को याद आता है बचपन
(पिछले दिनों `हम लोग´ मैग्जीन के `मेरा संडे´ कॉलम के लिए फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र से रूबरू होने का मौका मिला। हम दोनों ही पंजाबी थे, शायद इसलिए या फिर उनके बिंदासपन के कारण उनसे बात करके काफी मजा आया। धर्मेन्द्र संडे के बारे में बताते हुए अपने बचपन की यादों में किस तरह खो गए, जानते हैं खुद उन्हीं की जुबानी...)
संडे है तो देर तक सोया जाए, बाहर खाना खाया जाए, घूमा-फिरा ज़्यादा जाए, ऐसा मेरी आदत में बिलकुल भी शुमार नहीं है इसलिए मुझे इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ता कि संडे है या कोई और दिन और जब घूमने का मन हो, बाहर खाने का मन हो, तब मैं संडे का इंतजार नहीं करता। छुट्टी का दिन है तो इस रोज आराम थोड़ा ज़्यादा होता है। मैं सिर्फ संडे ही नहीं, बल्कि हर पल को पूरे दिल से जीता हूं। मेरे पास जब कोई काम नहीं होता तो उन पलों को मैं संडे के आनंद की तरह सेलिब्रेट करता हूं।
सबसे यादगार संडे की बात करूं तो बचपन के दिन ताजा हो जाते हैं। बचपन का संडे वाकई बहुत मजेदार होता था। स्कूल की छुट्टी होती थी तो दोस्तों के साथ मिलकर खूब मस्ती करता था। वो गांव, वो खेत सब याद आता है,स्कूल से छुट्टी का ये दिन फिर खेतों में ही बीतता था। और फिर इस बात पे मां का डांटना कि बिना खाये-पिये घूमते रहते हो। वैसे भी फेस्टिव सीजन है तो इन दिनों बचपन की यादें जैसे मेरी आंखों में ही तैरती रहती हैं। माता-पिता का प्यार और बचपन में मिलकर मनाया जाने वाला हर त्यौहार मैं आज भी बहुत मिस करता हूं। बचपन की दीवाली का जिक्र हो तो सबसे पहले मां की याद आती है। घर के हर सदस्य की दीवाली खुशनुमा होने के पीछे मां की कड़ी मेहनत होती थी। अब तो दीवाली पर बिजली की लडि़यों और मोमबत्तियों से रोशनी होने लगी है। एक दिन पहले ही मां कोरी मिट्टी के दीये पानी में भिगोकर रख देती थीं। पूरे घर को हम भाई-बहन मिलकर दीयों से रोशन करते थे। दीये मुझे हमेशा से ही आत्मविश्वास के प्रतीक लगते हैं। अंधेरे में रोशनी बिखेरते दीयों की खूबसूरती का मैं बचपन से लेकर आज तक कायल हूं।
कुछ लोगों के लिए संडे लेजी-डे से ज़्यादा कुछ नहीं है। इतना आलस कि देखने वाले को भी जम्हाई आने लगे। मुझे कोई जरूरी काम करना हो तो ये सोचकर कभी इंतजार नहीं करता कि आज संडे है, कल करेंगे। दिन चाहे कोई भी हो, हर दिन ईश्वर का है। हम रोज किसी कमजोर शख्स की हिम्मत बनें। सभी को प्यार दें तो सिर्फ संडे ही नहीं, बल्कि पूरी जिंदगी और भी ज़्यादा खूबसूरत हो जाएगी या ये करें कि संडे को ज़्यादा प्यार दें, ज़्यादा भले काम करें।
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6 comments:
बचपन तो सभी को याद आता है भाई |
दिवाली की शुभकामनाये
धर्मेन्द्र जी के बारे में जानकर अच्छा लगा,आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये
दीपावली पर शुभकामना -
धर्मेन्द्र जी ने भावुक होकर
अपने बचपन को ,
माँ को
और गाँव की दीवाली को
याद किया है
अच्छा लगा पढना
- लावण्या
आपको व आपके परिवार को दीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएं ।
घुघूती बासूती
धर्मेन्द्र का इस तरह यादों में खो जाना अच्छा लगा पढ़कर.
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
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