Monday, November 10, 2008

बहू और बेटी!


(लघु कथा)
एक महिला अपनी बहू और बेटी के साथ मंदिर पहुंची। पंडित जी को अपनी व्यथा सुनाई कि बेटी ससुराल में सुखी नहीं है। ससुराल वाले उसे मारते-पीटते हैं, कई-कई दिन भूखा रखते हैं। दहेज भी बहुत दिया, बेटी में भी कोई कमी नहीं, नित्य पूजा-पाठ भी करती है, फिर भी आखिर सुखी क्यों नहीं है? वह आशंकित थी कि कहीं ये किसी के टोने-टोटके का नतीजा तो नहीं? पंडित जी से यज्ञ-अनुष्ठान या कोई अन्य उपाय पूछा कि ससुराल वाले इसे अपनी बेटी समान समझें। पंडित जी ने लड़की का हाथ देखा और कुछ फूल देकर समस्या-समाधान के लिए पूजन सामग्री लाने भेज दिया। फूल लेकर महिला का मन कुछ आश्वस्त हुआ कि पूजा के बाद बेटी को ससुराल में मायके जैसा सुख मिलेगा।
तीनों मंदिर से बाहर निकलीं तो बेटी की चप्पल गायब थी। काफी देर ढूंढने पर भी चप्पल नहीं मिली तो महिला अपनी बहू से बोली-`बेटी, अपनी चप्पल इसे दे दो, कुछ ही देर में घर पहुंच जाएंगे। रास्ते में पत्थर बहुत हैं, कहीं चुभ न जाए।´ बहू ने चुपचाप अपनी चप्पल उतारी और तीनों वहां से चल दीं।
रास्ते में महिला सोच रही थी कि पूजन से बेटी के दुख का कारण जरूर पता चलेगा। बेटी सोच रही थी कि मंदिर से मिले फूल उसके दांपत्य जीवन की चुभन दूर करेंगे, लेकिन बहू के मन में कुछ भी खयाल नहीं थे। वो सिर्फ संभलकर चल रही थी कि कहीं कोई कांटा या पत्थर उसके पांवों में न चुभ जाए।

13 comments:

manvinder bhimber said...

khoobsurat ahsaas .....likhte rahen

Unknown said...

आपकी लघु कथा बहुत दीर्घ संदेश देती है. दुर्भाग्यवश यही यथार्थ है. कब बेटी और बहू में फर्क करना बंद करेंगे लोग?

पुनीत ओमर said...

नारी की अक्सर यही नियति होती है.
इसीलिए शायद कहानी के सभी पात्र नारी ही हैं..

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया कहानी !
घुघूती बासूती

mehek said...

ek sundar kahani,hmm bahu aur beti ka farak karana ek maa ko chod dena chahiye

सुजाता said...

कहानी का स्रोत जहाँ भी हो , अच्छी ही है ,कटाक्ष को सही तरीके से समझना ज़रूरी है ।

mehek said...

well thanks for appreciating my layout in english log,i hve my personal hindi blog also http://mehhekk.wordpress.com/ ,
actualy its easierto comment through google blog on blogspot rather than wordpress.

RADHIKA said...

बहुत ही अच्छी और भावपूर्ण कहानी

रंजना said...

पढ़ते ही मन में सबसे पहला वाक्य आया.......

सतसैया के दोहरे,ज्यों नाविक के तीर,
देखन ही छोटे लगे,घाव करे गंभीर.......

जितनी छोटी आपकी उम्र है ,उतनी ही गहरी पैनी आपकी नजर और कलम की धार है.
इस लघु कलेवर में आपने बहुत बड़ी बात कह दी.
ऐसे ही लिखते रहें..शुभकामनाएं.

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाहवा..... अच्छी लघुकथा कही है आपने... बधाई स्वीकारें ...

Jimmy said...

Kiyaa baat Hai Great Words Bouth He Aacha Post Hai


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Pawan Kumar said...

Bahut hi badhiya.Yah hamare samaj ki sabse badi vidambana hai ki ham ab tak bahu aur beti me fark karte hain.

Dev said...

Dileepraag ji aapne jo apne blog ka nam rakha hai, mujhe bahut achchha laga, man ki parte bahut sundar nam hai, such much man ki kai parte haoti
hai aur har parto ki apni visheshataye hoti hai....

Ha aapki kahani bahoo aur beti bahut gahari hai suchmuch bahuh gahri, mere hisab se aap kahani lekhan me bahut unchai par jayege...

Badhi..