Friday, November 14, 2008
पागल
(कहानी)
`अगर आज के बाद मुझे किसी ने फिर से पागल कहा तो मैं कभी तुम्हारे पास नहीं आऊंगा।´ ऐसा कहकर भगवान के चरणों में सिर रखकर रोशन जोर-जोर से रोने लगा।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। इससे पहले भी कई बार जब-जब उसे किसी ने `पागल´ कहा, वह मंदिर में बैठकर भगवान से इसी तरह की बातें करता था। रोशन पागल नहीं था, लेकिन कुछ बातें उसे सामान्य लोगों से अलग करती थी। हाथ धोते वक्त कोई चींटी पानी में चली जाती तो वह पहले उसे सूखी जगह पहुंचाता, फिर हाथ धोता। बीच रास्ते बैठे भिखारियों से बातें करना उसे अच्छा लगता था। बहुत भावुक था वो1 अपने हर दोस्त आर जरा-सी भी जान-पहचान वाले व्यक्ति से वो अपनापन दिखाता था। ये बात अलग है कि इस अपनेपन का दूसरे मजाक बनाते थे।
पांच साल पहले उसका बड़ा भाई एक सड़क दुर्घटना में चल बसा था, तब से रोशन बुझा-बुझा रहता थ। आज रोशन अपने कुछ दोस्तों के साथ रेस्तरां गया तो वहां किसी बात पर उसके एक दोस्त ने उसे `पागल´ कह दिया, तब वह कुछ नहीं बोला पर घर आते ही `पागल´ शब्द उसके कानों में गूंजने लगा और हर बार की तरह वो अपने कमरे से उठकर मंदिर में जाकर रोते हुए भगवान से बातें करने लगा। कुछ देर बाद जब मां ने उसे मंदिर में देखा तो उसने उसे वहां से उठाकर कमरे में लेटा था। रोशन को नींद नहीं आ रही थी। लेटे-लेटे वो सोचने लगा कि इससे पहले जब वो अपने एक दोस्त के बड़े भाई की शादी में गया था, तब बारात देखकर अपने भाई की शादी के बारे में सोचकर वो रो पड़ा था। इसी बात पर वहां खड़े एक बुजुर्ग ने उसे `पागल´ कहा था। कुछ देर रोशन लेटा-लेटा सोचता रहा, फिर उठकर डायरी लिखने बैठ गया। डायरी लिखते-लिखते उसकी आंख लग गई और वो टेबल पर ही सो गया। सुबह मां ने जब यह देखा तो उसने रोशन के हाथ से डायरी ली और उसे पलंग पर लेटा दिया। वह डायरी पढ़ने लगी। जैसे-जैसे वह डायरी के पन्ने पलटती जा रही थी, उसकी आंखों से आंसू बहते जा रहे थे। मां के रोने की आवाज सुनकर रोशन की नींद खुली तो उसने झट-से डायरी ले ली। मां की गोद में सिर रखकर वह सुबकने लगा। मां ने आंसू पोंछे, फिर बेटे को चुप करवाकर समझाने लगीं-`रोशन, तुम्हें कितनी बार समझाया है कि हर किसी को अपने दिल का हाल मत बताया करो। यहां दूसरों की भावनाओं को समझने वाले कम और मजाक बनाने वाले लोग ’यादा हैं। तुम्हें भैया की याद आती है तो भी तुम रोया मत करो। इससे उन्हें दुख पहुंचेगा। याद है न, तुम्हारे भैया हमेशा तुम्हें कहते थे कि रोने वाले कमजोर होते हैं और तुम तो बहादुर हो।´
मां की बात सुनते ही रोशन ने आंसू पोंछ लिए। उसने घड़ी में टाइम देखा तो पांच बजने वाले थे। उसने जल्दी से हाथ-मुंह धोए और बस स्टैंड के लिए रिक्शा लिया। आज उसका दोस्त राकेश एक सप्ताह के लिए बाहर जा रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने जैसे ही अपने गालों पर हाथ फेरा, दाढ़ी के कच्चे बालों की हल्की चुभन से उसे अपने भैया की वो बात याद आ गई, जब उसने पूछा था-`भैया, मैं बड़ा कब होऊंगा और पापा मुझे अकेले बाहर जाने देंगे?´ भैया ने जवाब दिया था-`जब तुम्हारे दाढ़ी-मूंछें आएंगी और शेव बनवाने लगोगे, तब समझना कि तुम बड़े हो गए हो।´
भैया की याद आते ही उसकी आंखें फिर से भीग गई पर उसे मां की बात याद आई तो उसने आंखें पोंछी और खुद से बातें करने लगा-`अब मैं कभी नहीं रोऊंगा, नहीं तो भैया को दुख होगा। अब तो मैं बड़ा हो चुका हूं और बड़े कभी रोते नहीं।´
बस स्टैंड पहुंचकर वो अपने दोस्त राकेश का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद राकेश वहां आ गया। कुछ देर दोनों बतियाते रहे। राकेश बस में सवार हुआ। वापिस जाने के लिए रोशन मुड़ा ही था कि उसे मयंक मिल गया। मयंक स्कूल के समय से रोशन का दोस्त था। उसने रोशन से बस स्टैंड आने का कारण पूछा तो जवाब सुनकर जोर-जोर से हंसते हुए बोला-`अभी कल ही तो हम राकेश से मिले थे और तुम हो कि इतनी सदीü में सुबह-सुबह नींद खराब कर स्पेशल उसे सीऑफ करने आए हो। मुझे अपने पापा को छोड़ने आना था। मम्मी के बीस बार कहने पर जबरदस्ती आया हूं और तुम राकेश को अलविदा कहने...सच में तुम बिलकुल पागल हो।´
मयंक के जाने के बाद रोशन घर की ओर हो लिया। घर पहुंचते ही वो मंदिर में जाकर रोते हुए भगवान से बातें करने लगा। कुछ देर बाद मां ने देखा कि रोशन अचेत पड़ा था। मां ने उसे बहुत हिलाया-डुलाया, पानी डाला पर वह नहीं उठा। डॉक्टर को बुलाया गया। चेक करने के बाद डॉक्टर बोला-`आय एम सॉरी, आपका बेटा नहीं रहा।´
डॉक्टर की बात सुनते ही मां दहाड़ मारकर रो पड़ी। रोती भी क्यों न, उसका बेटा चला गया था। वो उसे गोद में लेकर रोने लगी-`उठ रोशन बेटा। तू पागल नहीं है। जो तुझे पागल कहते हैं, वो खुद पागल हैं। उठ रोशन...उठ बेटा...।´
मां बार-बार कह रही थी, उठ बेटा...उठ बेटा... पर वो कैसे उठता। वो चला गया था हमेशा के लिए। उसके भावुक और विनम्र स्वभाव को किसी ने समझा ही नहीं। अंतिम संस्कार के वक्त रोशन के पिता ने उसकी डायरी चिता में जलानी चाही तो उसके मामा ने डायरी पकड़ ली। घर लौटकर मामा ने डायरी पढ़ी तो वे रो पड़े। बोले-`अगर रोशन पागल था वो नॉर्मल लोगों से कहीं अच्छा था। उसे किसी ने नहीं समझा। उसे यूं ही `पागल´ नाम दे दिया और इसी नाम ने उसकी जान ले ली। लौट आओ रोशन, तुम पागल नहीं हो...लौट आओ...।´
वे कहते रहे-रोशन लौट आओ...पर अब रोशन चला गया था हमेशा-हमेशा के लिए। वो चला गया था अपने भैया के पास, लेकिन वो पागल नहीं था...नहीं था वो पागल।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
bahut marmik kahani,sahi wo ladka agar pagla tha to normal logo se bahut behtar tha.sundar katha rahi.
good story. rula diya aapne
सुंदर लघुकथा के लिये बधाई स्वीकारें
bahut sundar hai sab kuchh. kalyan ho
narayan narayan
Post a Comment