Friday, December 26, 2008
पंजाबन से पंगा!
कभी-कभी यूं लगता है कि ये जिंदगी बस एक पंगा ही है, जिसमें रोज कोई न कोई दंगा होता है, हर गली-चौराहे पर एक न एक भिखमंगा होता है और भला-चंगा हो और इसी कारण भीख ना मिल रही हो तो जानबूझकर नंगा होता है। भई ये तो सिर्फ मैंने दंगा, पंगा, भिखमंगा और नंगा आदि शब्दों की एक बेतुकी-सी तुकबंदी की है, लेकिन आज शाम को कुछ ऐसा हुआ कि ये सारे शब्दों का मिलन हो गया।
पकौड़े लेकर घर लौट रहा था कि एक सजी-धजी लड़की टाइप आंटी स्कूटी स्टार्ट करती दिखीं। पास में ही दो बच्चे भीख मांगते हुए घूम रहे थे। आंटी के पास पहुंचने ही वाला था कि एक बच्ची ने आंटी से कहा-`ए बाई, एक रुपया दे दे...।´ अपने मेकअप पर ही एक टाइम में सौ-पचास रुपए खर्च कर निकली आंटी को उस बच्ची से हमदर्दी नजर आना तो दूर की बात है, उसका मजाक उड़ाने के लहजे में बोलीं-`अरे यार...तू मुझे कुछ दे दे।´ मेरी जेब में कुछ सिक्के थे। मैंने बच्ची को देते हुए कहा-`लो मुझसे ले लो (एक सेकंड रुककर)...और इन आंटी को दे दो।´ इतना कहते हुए मैंने अपनी स्पीड कुछ बढ़ा दी, क्योंकि अगर मैं वहां रुकता तो पांच-छह सेकंड में हुई इस घटना का एंड मेरी पिटाई या कुछ और भी हो सकता था। ऐसा इसलिए कि वो आंटी जिस घर से निकली थीं, वो पूरी गली पंजाबियों की है। वैसे तो मैं भी पंजाबी हूं, लेकिन वे एक हट्टी-कट्टी पंजाबन थीं और मैं एक दुबला-पतला पंजाबी। शुक्र है कि पंजाबन से पंगा भारी नहीं पड़ा। रब करे कि इस छोटे-से कमेंट से उन आंटी में इतना बदलाव आए कि वे किसी को भीख भले ही ना दें, लेकिन उनका मजाक भी ना बनाएं। चलते-चलते एक आधी-अधूरी याद आई गजल...
ज़िन्दगी ये तो नहीं तुझको संवारा ही न हो
कुछ न कुछ हमने तेरा कर्ज़ उतारा ही न हो
दिल को छू जाती है यूं रात की आवाज कभी
चौंक उठता हूँ कहीं तूने पुकारा ही न हो
कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर
सोचता हूं तेरे आंचल का किनारा ही न हो
शर्म आती है कि उस शहर में हैं हम कि जहाँ
न मिले भीख तो लाखों का गुजारा ही न हो
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10 comments:
अपने मसौदे, संरचना और अंदाज़ हर डिपार्टमेंट में ये एक जानदार लेख है.
आपने कमाल का लिखा है और आपकी किस्सागोई में वक्त के साथ और भी निखार आते जाना है.
ढेरों शुभकामनाएं
-ई-स्वामी(http://hindini.com/eswami)
sahi kiya aapne..
शर्म आती है कि उस शहर में हैं हम कि जहाँ
न मिले भीख तो लाखों का गुजारा ही न हो
भाई बहुत खूब लिख्या वे....काका पंजाबी पंगा ले के नस्दे नहीं होंदे....लड़दे ने...बीबी नू चंगा पाठ पढाया...शाबाश...
नीरज
दिल को छू जाती है यूं रात की आवाज कभी
चौंक उठता हूँ कहीं तूने पुकारा ही न हो
Wah....!किस्सा accha lga...
सीख तो दे ही दी आपने।
अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
देख पतले लड़के...यूँ
किसी मोटे-ताजे
बन्दे-
बंदियों
को
आड़े हाथ
न लिया
कर ....मेरे पेज का क्या होगा
........
नववर्ष की शुभकामनाएँ
First of all Wish u Very Happy New Year...
A nice Article....
Keep writing...
Regards...
वाह बच्चू इसे कहते हैं सबक सिखाना...सच है कभी हम सोचते नहीं कि मैले-कुचले कपड़े में खड़ा भिकमंगा बच्चा यदि हमारा अपना मासूम होता तो.......अपने अंदर के मासूम लेकिन संजीदा बच्चे को हमेशा जीवित रखना। आमीन!
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