
इन दिनों सभी भारतीयों के दिल में ऑस्ट्रेलियाई लोगों के लिए नफरत भड़क रही है। हम सोच रहे हैं कि वहां रह रहे भारतीयों पर अत्याचार हो रहा है। सच्चाई खैर जो भी हो, लेकिन हाथ की सभी उंगलियां एक-सी तो नहीं होतीं। डेली न्यूज की पत्रिका ´खुशबू´ के लिए मेलबर्न में रह रही भारतवंशी नवदीप कौर से बातचीत की तो इस मुद्दे का दूसरा पहलू सामने आया। इस पोस्ट के जरिए प्रस्तुत है नवदीप कौर के मन की बात, उन्हीं की जुबानी...
तकरीबन चार साल पहले जब पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना तय हुआ, बहुत खुश थी। माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण कभी ट्रेन में भी अकेले सफर नहीं किया था। पहली बार उनसे इतनी दूर जा रही थी, इस कारण थोड़ी दुखी थी। पहली बार हवाई जहाज में बैठना था, इसलिए कुछ-कुछ डरी हुई भी। मुझे होटल मैनेजमेंट का कोर्स करना था, इसलिए ऑस्ट्रेलिया जाने का निर्णय किया।
जब यहां (मेलबर्न) आई तो सिर्फ अपने पहनावे में बदलाव करना पड़ा। खाने की भी थोड़ी समस्या आई, लेकिन यहां के लोगों से कभी कोई परेशानी नहीं हुई। एक बात अच्छी लगी कि इंडिया की तरह यहां कोई आपको घूर-घूर कर नहीं देखता। राह चलती लड़कियों को परेशान नहीं होना पड़ता। हालांकि ऑस्ट्रेलिया हो या इंडिया, अपराधिक प्रवृçत्त के लोग तो हर जगह होते हैं। मदद करने के मामले में ऑस्ट्रेलियंस कभी पीछे नहीं हटते। शुरुआत की एक बात याद आती है। बस से कॉलेज के लिए जा रही थी। एक विदेशी लड़के ने भद्दा कमेंट किया। मेरे साथ जो इंडियन फ्रेंड्स थे, वे इस पर हंस दिए। मुझे बहुत बुरा लगा, लेकिन बस में ही खड़े दूसरे विदेशी लड़के ने छेड़खानी करने वाले को खूब डांटा। इतने सालों से सब-कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। यहां के फ्रेंड्स से बहुत घुलमिल गई हूं, लेकिन पता नहीं अचानक क्या हो गया? इन दिनों बहुत बुरा महसूस कर रही हूं। पापा-मम्मी बहुत टेंशन में हैं। टीवी और अखबारों में जिस तरह से खबरें आ रही हैं, उससे शायद सभी भारतीयों के मन में ऑस्ट्रेलियंस के लिए नफरत पैदा हो रही है। इधर, उसी नफरत से पनप रहे विरोध-प्रदर्शनों से ऑस्ट्रेलियंस को भी ठेस पहुंच रही है। आज हर इंडियन यही सोच रहा है कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ भेदभाव होता है, जबकि यह सच नहीं है। पिछले चार सालों में मुझे याद नहीं कि सिर्फ इंडियन होने के कारण मुझे परेशान किया गया हो। अब जिस तरह से घटनाओं का प्रचार किया जा रहा है, उससे जरूर ऑस्ट्रेलियाई फ्रेंड्स हमसे डरने लगे हैं। उन्हें लगने लगा है कि उनका मजाक भी हमें कहीं नस्लीय टिप्पणी ना लगने लगे। मैं सिर्फ एक बात कहना चाहूंगी कि असामाजिक तत्वों का कोई धर्म नहीं होता। अपराधी कभी यह देखकर लूटपाट नहीं करता कि उसका शिकार भारतीय है। एक हिंदुस्तानी के साथ जरा भी ज्यादती हुई है तो उसे नस्लीय हमला कहकर न्याय की मांग की जा रही है। ऑस्टे्रलियाई पुलिस के रिकॉर्ड देखेंगे तो ऑस्ट्रेलियंस को भी ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है। हमला करने वाले बेरोजगार, नशेड़ी या फिर कुछ मामलों में हिंदुस्तानियों से नफरत रखने वाले हो सकते हैं। यह पूरी तरह गलत है कि दो दोस्तों में हुए झगड़े को भी नस्लीय भेदभाव कहकर प्रचारित किया जा रहा है। इन चार सालों में कई ऑस्ट्रेलियाई फ्रेंड्स ऐसे भी बने, जिनके घर मेरा आना-जाना है। उन्हीं के घर जाकर जब भारतीय पकवान बनाकर उन्हें खिलाती हूं तो भरपूर स्नेह मिलता है। कुछ फ्रेंड्स को तो थोड़ी-बहुत हिंदी भी सिखा चुकी हूं। अब उन्हीं फ्रेंड्स के मन में डर पैदा हो गया है। वे हमसे डरते लगे हैं। ऐसा लगने लगा है कि इस दुष्प्रचार ने हमारे बीच संदेह पैदा कर दिया है। नस्लभेद के कारण दस प्रतिशत असुरक्षा हो सकती है, लेकिन भारतीयों को भी संयम बरतना होगा। यहां भारतीयों को शांत स्वभाव और मेहनती माना जाता है, लेकिन इंडिया घूमने जाने वाले विदेशी भी अपने साथ कुछ बुरे अनुभव लेकर जरूर लौटते हैं। भारत में टूरिस्ट्स के साथ होने वाली घटनाओं को भी वे नस्लीय भेदभाव से जोड़कर देख सकते हैं, लेकिन नहीं। वे भी जानते हैं और हमें भी मानना होगा कि परदेस के माहौल के अनुसार थोड़ा-बहुत परिवर्तन तो खुद में लाना ही होगा। विदेशियों को पराया समझकर उनसे बातचीत नहीं करेंगे तो उन्हें जान भी नहीं पाएंगे। मेलजोल की भावना रखे बिना कुछ नहीं हो सकता। मुझे लगता कि भारतीयों को अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया करवाने के बजाए ऑस्ट्रेलियंस से उनका कयुनिकेशन गैप खत्म करने पर जोर देना चाहिए। अगर इसी तरह यह आग बढ़ती गई तो ऑस्ट्रेलियंस और हमारे बीच इतनी दूरियां आ जाएंगी कि उन्हें खत्म करना नामुमकिन हो जाएगा।
5 comments:
ज्ञान वर्धक लेख है. धन्यवाद्
ham bhee dua karte hain kee baat jyada naa badhe. lekin jab Austrailian sarkar bhee Nasalwadee ghatna kabul kar rahee hai to iska matlab kahin gahraee me kuch ho raha hai. Aap dekhiye naa, har din khabar aa rahi hai. to Ast. Govtt kar kya rahi hai.
रिसेशन के माहौल में घटते रोजगार के अवसर और रोजगार के अभाव में बढ़ती हिंसा की घटनाएं एक पहलू है। सही मायने में देखें, तो इस मसले पर मंदी का असर एक अपना कद रखता है। लेकिन जो भी हो रहा है सही नहीं हो रहा। पता नहीं लोगों को एक-दूसरे से लडऩे-झगडऩे की फुर्सत मिल कैसे जाती है।
अच्छा लिखा।
हम भी सहमत हैं. अचानक नस्ली भेदभाव खडा नहीं हुआ होगा. एक वजह आस्ट्रेलियन युवाओं में बेरोजगारी की चिंता हो सकती है. ताल मेल बिठाने की आवश्यकता है.
ise kisi bhi haal me raka jana jaruri hai
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